तिश्नगी

तिश्नगी प्रीत है, रीत है, गीत है
तिश्नगी प्यास है, हार है, जीत है

Wednesday, 12 September 2012

ग़लतफ़हमी !!!

जब से अपने दरम्याँ कुछ ग़लतफ़हमी सी हो गयी है,
ये जिंदगी बड़ी सहमी-सहमी सी हो गयी है |

कुछ भी कहना-सुनना अब अच्छा नही लगता,
अनजाने में खुद से कोई बेरहमी सी हो गयी है |

कोई आकर सपने में झंझोड़ने लगता है मुझे,
बेक़रार सहर, शब् वहमी सी हो गयी है |

चलो भूले से ही सही पर लौटती है मुस्कान तेरे गालों पर,
जानकार हाल अपनों का खुशफहमी सी हो गयी है |
ये जिंदगी बड़ी सहमी-सहमी सी हो गयी है ||

---------------------------------- आशीष नैथानी 'सलिल' ----------------------------------

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