जब से अपने दरम्याँ कुछ ग़लतफ़हमी सी हो गयी है,
ये जिंदगी बड़ी सहमी-सहमी सी हो गयी है |
कुछ भी कहना-सुनना अब अच्छा नही लगता,
अनजाने में खुद से कोई बेरहमी सी हो गयी है |
कोई आकर सपने में झंझोड़ने लगता है मुझे,
बेक़रार सहर, शब् वहमी सी हो गयी है |
चलो भूले से ही सही पर लौटती है मुस्कान तेरे गालों पर,
जानकार हाल अपनों का खुशफहमी सी हो गयी है |
ये जिंदगी बड़ी सहमी-सहमी सी हो गयी है ||
---------------------------------- आशीष नैथानी 'सलिल' ----------------------------------
ये जिंदगी बड़ी सहमी-सहमी सी हो गयी है |
कुछ भी कहना-सुनना अब अच्छा नही लगता,
अनजाने में खुद से कोई बेरहमी सी हो गयी है |
कोई आकर सपने में झंझोड़ने लगता है मुझे,
बेक़रार सहर, शब् वहमी सी हो गयी है |
चलो भूले से ही सही पर लौटती है मुस्कान तेरे गालों पर,
जानकार हाल अपनों का खुशफहमी सी हो गयी है |
ये जिंदगी बड़ी सहमी-सहमी सी हो गयी है ||
---------------------------------- आशीष नैथानी 'सलिल' ----------------------------------
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