तिश्नगी

तिश्नगी प्रीत है, रीत है, गीत है
तिश्नगी प्यास है, हार है, जीत है

Monday, 8 October 2012

किस वजह ?

किस वजह मैं सुधर जाऊं,
क्या पता फिर मुकर जाऊं |
बाँध ले बन्धन में मुझको
ना खबर फिर किधर जाऊं ||
सामने ही है खड़ी तू ,
और पीछे आईना है |
नासमझ मैं सोचता हूँ,
इधर जाऊं या उधर जाऊं ||


[काव्य-संग्रह "तिश्नगी" से]

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