किस वजह मैं सुधर जाऊं,
क्या पता फिर मुकर जाऊं |
बाँध ले बन्धन में मुझको
ना खबर फिर किधर जाऊं ||
सामने ही है खड़ी तू ,
और पीछे आईना है |
नासमझ मैं सोचता हूँ,
इधर जाऊं या उधर जाऊं ||
[काव्य-संग्रह "तिश्नगी" से]
और पीछे आईना है |
नासमझ मैं सोचता हूँ,
इधर जाऊं या उधर जाऊं ||
[काव्य-संग्रह "तिश्नगी" से]
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