हमें कुछ लोग घटिया दोस्त बताते हैं यारों |
मगर हम तो दुश्मनी भी शिददत से निभाते हैं यारों ||
शर्त ये थी की कभी लौटकर नहीं आयेंगे वो |
वो अब भी मेरे खयालों में आते जाते हैं यारों ||
तोड़कर गुल टहनी से हुआ अहसास इतना ही |
किसी की मुस्कुराहट को, किसी का घर जलाते हैं यारों ||
मेरे पैरों के छालों ने कर ली दोस्ती तेरी गलियों से |
उनकी गली के कांटे भी अब मरहम लगाते हैं यारों ||
ये पतंग जिंदगी की एक रोज कटके गिरनी है |
देखना है इस पतंग को, कब तक बचाते हैं यारों ||
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