इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ खुदा !
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं ||
मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे पीछे
तू देख कि क्या रंग है तेरा मेरे आगे ||
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी, कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान, लेकिन फिर भी कम निकले ||
गो हाथ को जुम्बिश नहीं आँखों में तो दम है
रहने दो अभी साग़र-ओ-मीना मेरे आगे ||
मेहरबाँ हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त
मैं गया वक़्त नहीं हूँ कि फिर आ भी न सकूँ ||
उनके देखे से जो आ जाती है मुँह पे रौनक
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है ||
उधर वो बद-गुमानी है, इधर ये ना-तवानी है
न पूछा जाए है उससे, न बोला जाए है मुझसे ||
कब वो सुनता है कहानी मेरी
और फिर वो भी जबानी मेरी ||
क़ासिद के आते-आते ख़त इक और लिख रखूँ
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में ||
कोई वीरानी सी वीरानी है
दश्त को देखके घर याद आया ||
ग़ालिब छुटी शराब पर अब भी कभी-कभी
पीता हूँ रोज़-ए-अब्र औ शब-ए-माहताब में ||
- ग़ालिब !!
Mirza Ghalib !
(Painting/Sketch by : Ashish Naithani)
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं ||
मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे पीछे
तू देख कि क्या रंग है तेरा मेरे आगे ||
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी, कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान, लेकिन फिर भी कम निकले ||
गो हाथ को जुम्बिश नहीं आँखों में तो दम है
रहने दो अभी साग़र-ओ-मीना मेरे आगे ||
मेहरबाँ हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त
मैं गया वक़्त नहीं हूँ कि फिर आ भी न सकूँ ||
उनके देखे से जो आ जाती है मुँह पे रौनक
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है ||
उधर वो बद-गुमानी है, इधर ये ना-तवानी है
न पूछा जाए है उससे, न बोला जाए है मुझसे ||
कब वो सुनता है कहानी मेरी
और फिर वो भी जबानी मेरी ||
क़ासिद के आते-आते ख़त इक और लिख रखूँ
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में ||
कोई वीरानी सी वीरानी है
दश्त को देखके घर याद आया ||
ग़ालिब छुटी शराब पर अब भी कभी-कभी
पीता हूँ रोज़-ए-अब्र औ शब-ए-माहताब में ||
- ग़ालिब !!
Mirza Ghalib !
(Painting/Sketch by : Ashish Naithani)
वाह, बहुत खूब
ReplyDeleteWaah , Bahut Umda
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