(जनाबे मुनव्वर राना साहब के शेर पर)
बरसात के संगीत में अल्फाज़ मिला दे
मुरझाए से पंखों में जो परवाज़ मिला दे
कुछ पास तो आज राज़ से कुछ राज़ मिला दे
" बस तू मेरी आवाज़ से आवाज़ मिला दे
फिर देख कि इस शहर में क्या हो नहीं सकता ||"
बरसात के संगीत में अल्फाज़ मिला दे
मुरझाए से पंखों में जो परवाज़ मिला दे
कुछ पास तो आज राज़ से कुछ राज़ मिला दे
" बस तू मेरी आवाज़ से आवाज़ मिला दे
फिर देख कि इस शहर में क्या हो नहीं सकता ||"
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