तिश्नगी

तिश्नगी प्रीत है, रीत है, गीत है
तिश्नगी प्यास है, हार है, जीत है

Sunday, 17 November 2013

आजाद हैं हम ?

आजाद हैं हम
उस परिंदे की तरह
जो कुछ समय हवा में उड़कर
लौट आता है वापस पिंजरे में |

आजादी ऐसी कि
जिस वाहन में सवार हैं
उस पर अधिकार नहीं,
जिसका अधिकार है
उस पर विश्वास नहीं |

आजादी सड़कों पर नारों के रूप में
पोस्टरों की शक्ल में नजर आती है
और मुँह चिढ़ाती है हमें
कहकर कि, हाँ मैं हूँ |

आजादी अख़बारों की हेडलाइन में
कि चित्रकार की
अभिव्यक्ति की आजादी का हुआ है हनन,
बिहार को मुम्बई तक फैलने की आजादी नहीं |

आज बँधा है इंसान
मवेशी बनकर
आजादी के खूंटे से |

आजादी मौजूद है अब भी
संविधान में, धर्म की किताबों में
हकीकत में बिलकुल नहीं |

ये आजादी बेहद मँहगी शै है दोस्तों !


आशीष नैथानी सलिल
नवम्बर १५/२०१३
हैदराबाद  !!
 


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