आजाद हैं हम
उस परिंदे की तरह
जो कुछ समय हवा में उड़कर
लौट आता है वापस पिंजरे में |
आजादी ऐसी कि
जिस वाहन में सवार हैं
उस पर अधिकार नहीं,
जिसका अधिकार है
उस पर विश्वास नहीं |
आजादी सड़कों पर नारों के रूप में
पोस्टरों की शक्ल में नजर आती है
और मुँह चिढ़ाती है हमें
कहकर कि, हाँ मैं हूँ |
आजादी अख़बारों की हेडलाइन में
कि चित्रकार की
अभिव्यक्ति की आजादी का हुआ है हनन,
बिहार को मुम्बई तक फैलने की आजादी नहीं |
आज बँधा है इंसान
मवेशी बनकर
आजादी के खूंटे से |
आजादी मौजूद है अब भी
संविधान में, धर्म की किताबों में
हकीकत में बिलकुल नहीं |
ये आजादी बेहद मँहगी शै है दोस्तों !
आशीष नैथानी सलिल
नवम्बर १५/२०१३
हैदराबाद !!
उस परिंदे की तरह
जो कुछ समय हवा में उड़कर
लौट आता है वापस पिंजरे में |
आजादी ऐसी कि
जिस वाहन में सवार हैं
उस पर अधिकार नहीं,
जिसका अधिकार है
उस पर विश्वास नहीं |
आजादी सड़कों पर नारों के रूप में
पोस्टरों की शक्ल में नजर आती है
और मुँह चिढ़ाती है हमें
कहकर कि, हाँ मैं हूँ |
आजादी अख़बारों की हेडलाइन में
कि चित्रकार की
अभिव्यक्ति की आजादी का हुआ है हनन,
बिहार को मुम्बई तक फैलने की आजादी नहीं |
आज बँधा है इंसान
मवेशी बनकर
आजादी के खूंटे से |
आजादी मौजूद है अब भी
संविधान में, धर्म की किताबों में
हकीकत में बिलकुल नहीं |
ये आजादी बेहद मँहगी शै है दोस्तों !
आशीष नैथानी सलिल
नवम्बर १५/२०१३
हैदराबाद !!
No comments:
Post a Comment