मानसिकता घृणित हो गयी
और पौरुषत्व खोखला
जीना जाने हो गया
कितना मुश्किल ।
उजाला डराता घूरती आँखों से
अँधेरा सन्नाटे से,
आहटें दर-बदर पीछा करती ।
घिनौनी कामनायें,
घिनौने शख्श,
घिनौना कृत्य,
लील गयी एक जान मासूम सी ।
जाने कब तक रोयेंगे रोना हम
हालातों का,
शर्म आती है
खुद पर,
अपने तथाकथित सुशिक्षित और
सभ्य समाज पर ।
और पौरुषत्व खोखला
जीना जाने हो गया
कितना मुश्किल ।
उजाला डराता घूरती आँखों से
अँधेरा सन्नाटे से,
आहटें दर-बदर पीछा करती ।
घिनौनी कामनायें,
घिनौने शख्श,
घिनौना कृत्य,
लील गयी एक जान मासूम सी ।
जाने कब तक रोयेंगे रोना हम
हालातों का,
शर्म आती है
खुद पर,
अपने तथाकथित सुशिक्षित और
सभ्य समाज पर ।