तिश्नगी

तिश्नगी प्रीत है, रीत है, गीत है
तिश्नगी प्यास है, हार है, जीत है

Wednesday, 19 December 2012

शर्म आती है !!!

मानसिकता घृणित हो गयी
और पौरुषत्व खोखला  
जीना जाने हो गया
कितना मुश्किल ।

उजाला डराता घूरती आँखों से
अँधेरा सन्नाटे से,
आहटें दर-बदर पीछा करती ।

घिनौनी कामनायें,
घिनौने शख्श, 
घिनौना कृत्य,
लील गयी एक जान मासूम सी ।

जाने कब तक रोयेंगे रोना हम
हालातों का,
शर्म आती है
खुद पर,
अपने तथाकथित सुशिक्षित और 
सभ्य समाज पर ।




Tuesday, 18 December 2012

"बदला" - बालकथा

राजा और शेखर दोनों अच्छे दोस्त थे। दोनों 'श्रीनिधि विद्यालय' की चौथी कक्षा में पढ़ते थे और उनका घर भी आस-पास था। उनकी शरारतें आम बच्चों सी ही थी। लेकिन दोनों इस बात का ख़याल जरूर रखते कि उनकी शरारतों की जानकारी उनके घरों तक ना पहुँचे ।

शेखर नजर का चश्मा पहना करता था।  ये दोनों दोस्त अपने स्कूल की क्रिकेट टीम का हिस्सा थे। राजा, जो कि बड़ा ही गुस्सैल था, बहुत जल्दी ही अपना आपा खो बैठता था। उसके हाथ - पैर पर चोटों के निशान इस बात की पुष्टि भी करते थे ।

एक दिन रविवार को श्रीनिधि विद्यालय का क्रिकेट मैच केन्द्रीय विद्यालय की टीम से था। केन्द्रीय विद्यालय की टीम ने पहले बैटिंग की। अब बारी थी श्रीनिधि विद्यालय की पारी की। शेखर टीम का ओपनर बल्लेबाज था। उसने टीम को अच्छी शुरुआत दी लेकिन विपक्षी टीम के एक बॉलर रोशन की गेंद शेखर के चश्मे पर लग गयी । चश्मा टूट गया । शेखर आगे नहीं खेल पाया और उनकी टीम भी ये मैच हार गयी ।

राजा को इस बात से बड़ा दुःख हुआ और गुस्सा भी आया। उसे लगा कि रोशन ने जान बूझकर शेखर का चश्मा तोडा है । रोशन का घर राजा के घर के रास्ते में ही पड़ता था । राजा ने इस हार का बदला लेने की ठान ली ।

2 दिन बाद ही राजा शाम को रोशन के घर के नजदीक पहुँचा । उसके दिमाग में शेखर के टूटे हुए काँच के टुकड़े घूम रहे थे। उसने देखा कि रोशन के घर के बाहर एक सुन्दर सी एफ़ एल बल्ब जल रहा है । उसने काँच का बदला काँच से लेने की सोची और एक पत्थर उठा लिया । फिर इधर - उधर देखने लगा । जैसे ही राजा ने बल्ब फोड़ने के लिए पत्थर ताना, पीछे से जोरदार आवाज आयी - राजू !!!

राजा खड़ा का खड़ा रह गया । उसे तो जैसे साँप सूँघ गया था । जब हिम्मत करके पीछे मुड़ा तो अपने पिता को खडा पाया। राजा के पापा का चेहरा गुस्से से लाल था। बिना कुछ पूछे ही उन्होंने लड़के पर 2 थप्पड़ रसीद कर दिये और हाथ खींचकर घर ले आये। राजा ने हाथ का पत्थर नीचे गिरा दिया ।

घर पहुँचकर 2 और थप्पड़ पड़े । माँ ने आकर बीच-बचाव किया और इस मार का कारण पूछा । राजू ने रोते-रोते सब कुछ सच - सच बता दिया। तब राजा की माँ ने कहा - " बेटा,  आज अगर तुम उसका नुकसान करते हो तो कल वो करेगा और ये क्रम चलता ही रहेगा। दूसरे के साथ लड़ झगड़कर कोई बड़ा नहीं होता है, इन्सान बड़ा होता है दूसरों की गलतियाँ माफ़ करके और अपनी गलतियों से सीख लेकर। भगवान ने ये जिन्दगी हमें कुछ अच्छा काम करने के लिये दी है न कि लडाई - झगडे करने के लिये। खेल में हुई बातें खेल के मैदान में ही छोड़ देनी चाहिये ।"

माँ ने राजू के आँसू पोंछे । राजू ने मम्मी, पापा से सॉरी कहा और वादा किया कि वो फिर किसी से नहीं लडेगा ना ही ऐसी शरारतें करेगा। पापा ने खुश होकर राजा को  गोद में उठा लिया ।

तभी बाहर से शेखर की आवाज आयी, "राजू, मेरे पापा मेरे लिये नया चश्मा लेकर आ गये हैं, अब हम अगला मैच जरूर जीतेंगे ।"


Friday, 14 December 2012

प्रीत का गीत (12/12/12)

सखी, पिया परदेश गये हैं ।
छोड़ यही सन्देश गये है ।।

महिने दो महिने हो आये,
उनके आने की आस लगाये ।
तकती रस्ता शाम - सवेरे,
पर वापस कोई ना आये ।
ना आँसू आँखों में छाये,
बता यही निर्देश गये हैं ।
सखी, पिया परदेश गये हैं ।।

दिन - महिने मुश्किल से बीते,
राशन के बर्तन भी रीते ।
घर - पनघट सब बंजर- बंजर,
होंठ बेचारे खुद को सीते ।
ये जुगनू अंधियारा पीते,
सुना हमें उपदेश गये हैं ।
सखी, पिया परदेश गये हैं ।

बेसुरी हुई कोयल की बोली,
बेरंग मनी थी अबकी होली ।
बिस्तर पर करवट और सिलवट,
और यादों ने याद टटोली ।
कैसी सेहत, कैसी झोली ?
जाने कैसे देश गये हैं ।
सखी, पिया परदेश गये हैं ।

[काव्य-संग्रह "तिश्नगी" से]