तिश्नगी

तिश्नगी प्रीत है, रीत है, गीत है
तिश्नगी प्यास है, हार है, जीत है

Saturday, 17 November 2012

पहाड़ों पर सुबह !

हल्की ठण्डी हवा चलती है जब
ओंस की बूँद
गुलाब की पंखुड़ी पर अँगड़ाई लेती है

कोयलों का कलरव भी हो जाता है शुरू

सुथरे नीले अम्बर पर
पहाड़ों के कन्धों से
निकलता है सूरज सफर पर

पत्थरों की धमनियों में दौड़ने लगता है रक्त
माटी होने लगती है मुलायम
देवदार रगड़ता है हथेलियाँ

महीने की किताब का एक पन्ना पलट दिया जाता है
नया चटख पन्ना

पहाड़ों पर हर सुबह बड़ी हसीन होती है |

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