एक लम्बी रात
जो गुजरती है तुम्हारे ख्वाब में,
तुम्हें निहारते हुए
बतियाते हुए
किस्से सुनते-सुनाते हुए ।
और जब ये रात ख़त्म होती है,
सूरज की किरणें
मेरे कमरे में बने रोशनदानों से
झाँकने लगती हैं,
मेरी नींद टूट जाती है तब ।
तुम्हारे ख्वाब के बाद
नींद का इस तरह टूट जाना,
महसूस होता है गोया
कि जायकेदार खीर खाने के बाद
कर दिया हो कुल्ला,
और मुँह में शेष रह गया हो
महज फीकापन ।
जो गुजरती है तुम्हारे ख्वाब में,
तुम्हें निहारते हुए
बतियाते हुए
किस्से सुनते-सुनाते हुए ।
और जब ये रात ख़त्म होती है,
सूरज की किरणें
मेरे कमरे में बने रोशनदानों से
झाँकने लगती हैं,
मेरी नींद टूट जाती है तब ।
तुम्हारे ख्वाब के बाद
नींद का इस तरह टूट जाना,
महसूस होता है गोया
कि जायकेदार खीर खाने के बाद
कर दिया हो कुल्ला,
और मुँह में शेष रह गया हो
महज फीकापन ।
आपका हार्दिक धन्यवाद आदरणीय डॉ. शास्त्री जी जो आपने मेरी कविता को इतना मान दिया | :))))
ReplyDeleteNaithani G AAp to Hindi Poem Ke Sachin Bane Huye Ho .. Back TO Back Century.......
ReplyDeleteHum sab ki Dua aapke sath hain .AAp aise he hame aanandit karte rahe ........
बहुत-बहुत शुक्रिया भाई बिपिन भट्ट । आपकी मुहब्बतों का ही नतीजा है कि कुछ लिख पा रहा हूँ । :)
ReplyDeleteप्रेम बना रहे !!!