तिश्नगी

तिश्नगी प्रीत है, रीत है, गीत है
तिश्नगी प्यास है, हार है, जीत है

Friday 25 March 2016

लड़ो नेताओं लड़ो !!

लड़ो नेताओं, खूब लड़ो
शब्दों से लड़ो, डंडों से लड़ो
चाकू-छुरियों-गोलियों से लड़ो
चप्पलों से, जूतों से, लात-घूंसों से लड़ो

लड़ो कि लड़ने से ही मिलेगी कुर्सी तुम्हें
मंत्री-मुख्यमंत्री की,
कुर्सी मिलेगी तो पढेंगे तुम्हारे बच्चे विदेशों में
औरों के पढ़ें न पढ़ें,
कुर्सी मिलेगी तो ही कर सकोगे तमाम अनैतिक काम
कानून को साथ रख,
तभी तो भरपूर सैर-सपाटा कर सकोगे,
लड़ो कि तुम बाहुबली हो
राजाओं के वंशज हो
और लड़ना तुम्हारे रक्त में हैं  

लड़-लड़कर भूल जाओ आदमी व स्वान का भेद
काट खाओ एक दूजे को
अखबार की चटपटी ख़बरें बन जाओ
भूल जाओ बलिदानों को
बस याद करो साल में एक बार कैमरे के सामने
रस्म-अदायगी के लिए

लड़ो कि तुम्हारी लड़ाई से अनभिज्ञ है
देश की सरहद पर खड़ा तुम्हारे प्रदेश का सैनिक पुत्र
जिसने अपना गाँव तुम्हारे हवाले छोड़ा है
अनभिज्ञ हैं टूटी छतों के नीचे पढने वाले बच्चे
अनभिज्ञ हैं शेष किसान
अनभिज्ञ हैं पलायन कर चुके नौजवान,
तुम्हें लगता है कि वे सब अनभिज्ञ हैं ?

लड़ो कि लड़-लड़कर लहूलुहान हो जाओ
निचोड़ दो एक-दूसरे के खून का कतरा-कतरा
ताकि जब गंगा इस दूषित रक्त को बहा ले जाय हरिद्वार से पार
तो अगली बरसात के बाद खिलें कुछ नए पुष्प
कुछ नई खुशबुओं का जन्म हो
नई उम्मीदें पैदा हों
और जो सपने अधूरे रह गये हैं
उन्हें पूर्णता प्राप्त हो |
  



शीष  नैथानी
मार्च,२५/२०१६
मुम्बई 

Sunday 20 March 2016

दीवारों पे किसका चेहरा बनता है !!

दीवारों पे किसका चेहरा बनता है
पागलपन में जाने क्या-क्या बनता है

कुछ यादों को यह सुन-पढ़के जज़्ब किया
चट्टानों से दबके हीरा बनता है

धूप गली में आई सबने पर्दा किया
धूप से शायद सबका रिश्ता बनता है

दो पंछी, थोड़ी बारिश, थोड़ी सी धूप
सदियों बाद कहीं ये लम्हा बनता है

-- आशीष नैथानी !!